'श्रवण कुमार' का चरित्र चित्रण कक्षा 11 & 12 वालों के लिए

      श्रवण कुमार' का चरित्र चित्रण              

 'श्रवण कुमार' खण्डकाव्य के प्रमुख नायक श्रवण कुमार है, जो अपने माता पिता के साथ सरयू नदी के तट पर स्थित एक आश्रम में रहते हैं|डॉ. शिवबालक शुक्ल ने श्रवण कुमार के चरित्र को बड़ी कुशलता से चित्रित किया है, जिनके चरित्र की विशेषता निम्नलिखित हैं -

मातृ-पितृ भक्त - श्रवण कुमार एक आदर्श पुत्र है| वह अपने  माता-पिता को ईश्वर के समान मानता है और उनकी पूजा करता है| काँवर में बैठाकर, वह  उन्हें देवगृहों और विभिन्न तीर्थ स्थलों की यात्रा कराता है
बिठलाकर उनको कांवर में, करता वह गुरु भार वहन |
देव ग्रहो तीर्थों को जाता, सदा कराने प्रभु दर्शन ||

सत्यवादी - श्रावण की माता शूद्रा व पिता वैश्य थे| दशरथ द्वारा ब्रह्म हत्या की संभावना प्रकट करने पर, श्रवण कुमार बता देता है कि वे अधिक संतप्त ना हो, क्योंकि मैं ब्रह्म कुमार नहीं है

वैश्य पिता माता शूद्रा थी, मैं यूं प्रदुर भूत हुआ |संस्कार के सत प्रभाव से, मेरा जीवन पूत हुआ ||


संस्कारों को महत्व देने वालाश्रवण कुमार किसी के भी प्रति भेदभाव नहीं रखता है |वह कर्मशील एवं संस्कारों को महत्व देता है |वह अपने जीवन की पवित्रता का रहस्य अपने संस्कारों के प्रभाव को ही मानता है|
 तम असते अकोध सत्य, धृति विद्या बुद्धि सुकुमार |
सोच तथा इंद्री निग्रा हैं , दस सदस्य मेरे परिवार ||

सरल स्वभाव एवं क्षमाशील - श्रवण कुमार स्वभाव से सरल स्वभाव के है, उनके मन में किसी भी प्रति ईर्ष्या द्वेष का भाव जागृत नहीं होता है|दशरथ के बाण से घायल होने पर भी पास आए हुए दशरथ का अच्छे संबोधन से सम्मान करता है |दशरथ को अपराध के बोध से बचाने के लिए, इस घटना के संदर्भ में कहता है
 जो भवितव्य वही होता है, उसे सका कब कोई टाल ||

त्यागी निश्छल एवं निस अपराधी - श्रवण कुमार सरयू नदी के किनारे अपने माता-पिता के साथ की सेवा करते हुए, एक त्यागपूर्ण, निश्छल एवं निष्ठावान जीवन बिताने वाला युवक है| वह जान बूझ कर भी कोई अपराध नहीं करता है| दशरथ के बाण से घायल होने पर भी, वह आत्मचिंतन व्यक्त करता है
 अपरिग्रह विपिन वासी को, नगर चतुर से क्या काम |
 फिर भी बाण चलाकर मैया, किया किसी ने काम तमाम ||

आत्म संतोषी - श्रवण कुमार का जीवन के प्रति कोई मोल नहीं है| वह स्वभाव से संतोषी है, उसे भोग व ऐश्वर्य की नाम मात्र की कामना नहीं है| उसके मन में किसी को पीड़ा पहुंचाने का भाव ही जागृत नहीं होता है |उसका कथन है
 वन्य पदार्थों से ही होता रहता, मम जीवन निर्वाह |
 ऋषि हूं, नहीं किसी को पीड़ा पहुंचाने की उर में चाह ||

उपरोक्त से निष्कर्ष रूप में कहां जा सकता है कि श्रवण कुमार के चरित्र में मानवता के सभी उच्च आदर्शों का समन्वय हुआ है, जो भारतीय सदाचार और मर्यादा का ज्वलंत उदाहरण है |

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